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महिमित मसीह के साथ जुड़े रहना ही जीवन है

इसलिए जब तुम मसीह के साथ नवजीवन में जिलाए गए हो तो उन वस्तुओं की खोज में रहो, जो ऊँचे पर विराजमान हैं, जहाँ मसीह परमेश्वर की दायीं ओर बैठे हैं. अपना चित्त ऊपर की वस्तुओं में लीन रखो—उन वस्तुओं में नहीं, जो शारीरिक हैं क्योंकि तुम्हारी मृत्यु हो चुकी है तथा तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है. जब मसीह, जो हमारा जीवन हैं, प्रकट होंगे, तब तुम भी उनके साथ महिमा में प्रकट होगे.

इसलिए अपनी पृथ्वी की देह के अंगों को—वेश्यागामी, अशुद्धता, दुष्कामना, लालसा तथा लोभ को, जो वास्तव में मूर्तिपूजा ही है—मार दो क्योंकि इन्हीं के कारण परमेश्वर का क्रोध भड़क उठता है. एक समय तुम्हारा जीवन भी इन्हीं में लीन था. किन्तु अब तुम सभी क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा तथा गंदी भाषा का भी त्याग कर दो. एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम पुराने स्वभाव को उसके कामों सहित उतार चुके 10 और अब तुमने नए स्वभाव को धारण कर लिया है. यह स्वभाव अपने सृष्टिकर्ता की छवि के अनुसार वास्तविक ज्ञान के लिए नया होता जाता है. 11 परिणामस्वरूप अब यूनानी या यहूदी, ख़तनित या खतनारहित, बरबर या स्कूती, दास या मुक्त में कोई भेद नहीं है—मसीह ही सब कुछ और सब में मुख्य हैं.

12 इसलिए परमेश्वर के चुने हुए, पवित्र लोगों तथा प्रिय पात्रों के समान अपने हृदयों में करुणा, भलाई, विनम्रता, दीनता तथा धीरज धारण कर लो. 13 आपस में सहनशीलता और क्षमा करने का भाव बना रहे. यदि किसी को किसी अन्य के प्रति शिकायत हो, वह उसे उसी प्रकार क्षमा करे जैसे प्रभु ने तुम्हें क्षमा किया है 14 और इन सब से बढ़कर प्रेम-भाव बनाए रखो, जो एकता का समूचा सूत्र है.

15 तुम्हारे हृदय में मसीह की शान्ति राज्य करे—वस्तुत: एक शरीर में तुम्हें इसी के लिए बुलाया गया है. हमेशा धन्यवादी बने रहो. 16 तुम में मसीह के वचन को अपने हृदय में पूरी अधिकाई से बसने दो. एक दूसरे को सिद्ध ज्ञान में शिक्षा तथा चेतावनी दो और परमेश्वर के प्रति हार्दिक धन्यवाद के साथ स्तुति, भजन तथा आत्मिक गीत गाओ 17 तथा वचन और काम में जो कुछ करो, वह सब प्रभु मसीह येशु के नाम में पिता परमेश्वर का आभार मानते हुए करो.

घर-परिवार सम्बन्धित नैतिक शिक्षा

18 जैसा उनके लिए उचित है, जो प्रभु में हैं, पत्नी अपने पति के अधीन रहे.

19 पति अपनी पत्नी से प्रेम करे—उसके प्रति कठोर न हो.

20 बालक हमेशा अपने माता-पिता की आज्ञा पालन करें क्योंकि प्रभु के लिए यही प्रसन्नता है.

21 पिता अपनी सन्तान को असंतुष्ट न करे कि उनका साहस टूट जाए.

22 दास, पृथ्वी पर ठहराए गए अपने स्वामियों की हमेशा आज्ञापालन करें—मात्र दिखावे के लिए नहीं—उनके जैसे नहीं, जो मनुष्यों को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करते हैं, परन्तु प्रभु के भय में मन की सच्चाई में. 23 तुम जो कुछ करते हो, पूरे मन से करो, मानो प्रभु के लिए, न कि मनुष्यों के लिए 24 यह जानते हुए कि प्रभु से तुम्हें इसके फल के रूप में मीरास प्राप्त होगी. तुम प्रभु मसीह की सेवा कर रहे हो. 25 वह जो बुरा काम करता है, उसे परिणाम भी बुरा ही प्राप्त होगा—बिना किसी भेद-भाव के.