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परमेश्वर की संतान

मेरा कहने का उद्धेश्य यह है कि जब तक वारिस बालक है, दास और उसमें किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं होता, यद्यपि वह हर एक वस्तु का स्वामी है. वह पिता द्वारा निर्धारित समय तक के लिए रक्षकों व प्रबन्धकों के संरक्षण में रहता है. इसी प्रकार हम भी, जब बालक थे, संसार की आदि शिक्षा के अधीन दासत्व में थे. किन्तु निर्धारित समय के पूरा होने पर परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मे, व्यवस्था के अधीन, कि उन सबको छुड़ा लें, जो व्यवस्था के अधीन हैं, कि हम परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार प्राप्त कर सकें. अब इसलिए कि तुम सन्तान हो, परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो अब्बा, पिता पुकारता है, हमारे हृदयों में भेज दिया है. इसलिए अब तुम दास नहीं परन्तु सन्तान बन गए हो और यदि तुम सन्तान हो तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी.

जब तुम परमेश्वर को नहीं जानते थे, उस समय तुम उनके दास थे, जो वास्तव में ईश्वर हैं ही नहीं. किन्तु अब, जब तुमने परमेश्वर को जान लिया है, परन्तु यह कहें कि परमेश्वर द्वारा जान लिये गये हो, तो फिर तुम कमज़ोर तथा दयनीय आदि शिक्षाओं का दास बनने के लिए क्यों लौट रहे हो? क्या तुम्हें दोबारा उन्हीं का दास बनने की लालसा है? 10 तुम तो विशेष दिवस, माह, ऋतु तथा वर्ष मनाते जा रहे हो. 11 मुझे तुम्हारे लिए आशंका है कि कहीं तुम्हारे लिए मेरा परिश्रम व्यर्थ ही तो नहीं गया.

12 प्रियजन, मैं तुमसे विनती करता हूँ कि तुम मेरे समान बन जाओ क्योंकि मैं भी तुम्हारे समान बन गया हूँ. तुमने मुझे कोई हानि नहीं पहुंचाई. 13 तुम्हें याद होगा कि मैंने पहली बार अपनी अस्वस्थता की स्थिति में तुम्हें ईश्वरीय सुसमाचार सुनाया था 14 परन्तु मेरी शारीरिक स्थिति के कारण, जो तुम्हारे लिए एक परख थी, तुमने न तो मुझसे घृणा की और न ही मुझसे मुख मोड़ा, परन्तु मुझे इस प्रकार स्वीकार किया, मानो मैं परमेश्वर का स्वर्गदूत हूँ, मसीह येशु हूँ. 15 अब कहाँ गया तुम्हारा आनन्द मनाना? मैं स्वयं गवाह हूँ कि यदि सम्भव होता तो उस समय तुम अपनी आँखें तक निकाल कर मुझे दे देते. 16 क्या सिर्फ सच बोलने के कारण मैं तुम्हारा शत्रु हो गया?

17 वे तुम्हें अपने पक्ष में करने को उत्सुक हैं, किन्तु किसी भले मतलब से नहीं; उनका मतलब तो तुम्हें मुझसे अलग करना है कि तुम उनके शिष्य बन जाओ. 18 हमेशा ही अच्छे उद्धेश्य के लिए उत्साही होना उत्तम होता है और मात्र उसी समय नहीं, जब मैं तुम्हारे मध्य उपस्थित होता हूँ. 19 हे बालकों, तुममें मसीह का स्वरूप पूरी तरह विकसित होने तक मैं दोबारा प्रसव-पीड़ा में रहूँगा. 20 बड़ी अभिलाषा थी कि इस समय मैं तुम्हारे पास होता और मीठी वाणी में तुमसे बातें करता, क्योंकि तुम्हारे विषय में मैं दुविधा में पड़ा हूँ.

दो वाचाएँ: हागार तथा साराह

21 मुझे यह बताओ: तुम, जो व्यवस्था के अधीन रहना चाहते हो, क्या तुम वास्तव में व्यवस्था का पालन नहीं करते? 22 पवित्रशास्त्र में लिखा है कि अब्राहाम के दो पुत्र थे, एक दासी से और दूसरा स्वतन्त्र स्त्री से. 23 दासी का पुत्र शरीर से जन्मा था और स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र का जन्म प्रतिज्ञा के पूरा होने के लिए हुआ था.

24 यह एक दृष्टान्त है. ये स्त्रियाँ दो वाचाएँ हैं. सीनय पर्वत की वाचा हागार है, जिससे दासत्व की सन्तान उत्पन्न होती है. 25 हागार अरब में सीनय पर्वत है, जो वर्तमान येरूशालेम का प्रतीक है क्योंकि वह सन्तानों सहित दासत्व में है; 26 किन्तु स्वर्गीय येरूशालेम स्वतन्त्र है. वह हमारी माता है. 27 जैसा कि लिखा है:

बाँझ, तुम, जो सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ हो,
    आनन्दित हो.
तुम, जो प्रसव-पीड़ा से अनजान हो,
    जय-जयकार करो,
क्योंकि त्यागी हुई की सन्तान सुहागिन की सन्तान से अधिक है.

28 प्रियजन, तुम इसहाक के समान प्रतिज्ञा की सन्तान हो. 29 किन्तु जैसे उस समय शरीर से जन्मा पुत्र आत्मा से जन्मे पुत्र को सताया करता था, वैसी ही स्थिति इस समय भी है. 30 पवित्रशास्त्र का लेख क्या है? दासी व उसके पुत्र को निकाल दो क्योंकि दासी का पुत्र कभी भी स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र के साथ वारिस नहीं होगा. 31 इसलिए, प्रियजन, हम दासी की नहीं परन्तु स्वतन्त्र स्त्री की सन्तान हैं.