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मसीह में स्वतन्त्रता

इसी स्वतन्त्रता में बने रहने के लिए मसीह ने हमें स्वतन्त्र किया है. इसलिए स्थिर रहो और दोबारा दासत्व के जुए में न जुतो.

यह समझ लो: मैं, पौलॉस, तुम्हें बताना चाहता हूँ कि यदि तुम ख़तना के पक्ष में निर्णय लेते हो तो तुम्हारे लिए मसीह की कोई उपयोगिता न रह जायेगी. मैं ख़तना के हर एक समर्थक से दोबारा कहना चाहता हूँ कि वह सारी व्यवस्था का पालन करने के लिए मजबूर है. तुम, जो धर्मी ठहराए जाने के लिए व्यवस्था पर निर्भर रहना चाहते हो, मसीह से अलग हो गए हो और अनुग्रह से तुम गिर चुके हो. किन्तु हम पवित्रात्मा के द्वारा विश्वास से धार्मिकता की आशा की बाट जोहते हैं. ख़तनित होना या न होना मसीह येशु में किसी महत्व का नहीं है; महत्व है सिर्फ विश्वास का जिसका प्रभाव दिखता है प्रेम में.

दौड़ में बहुत बढ़िया था तुम्हारा विकास. कौन बन गया तुम्हारे सच्चाई पर चलने में रुकावट? यह उकसावा उनकी ओर से नहीं है, जिन्होंने तुम्हें बुलाया. थोड़ा-सा ख़मीर सारे आटे को ख़मीर कर देता है. 10 प्रभु में मुझे तुम पर भरोसा है कि तुम किसी अन्य विचार को स्वीकार न करोगे. जो भी तुम्हें भरमाएगा व ड़ाँवा-ड़ोल करेगा, वह दण्ड भोगेगा, चाहे वह कोई भी क्यों न हो. 11 प्रियजन, यदि मैं अब तक ख़तना का प्रचार कर रहा हूँ तो मुझ पर यह सताहट क्यों? इस स्थिति में तो क्रूस के प्रति विरोध समाप्त हो गया होता. 12 उत्तम तो यही होता कि वे, जो तुम्हें ड़ाँवा-ड़ोल कर रहे हैं, स्वयं को नपुंसक बना लेते.

स्वतन्त्रता और भलाई

13 प्रियजन, तुम्हारा बुलावा स्वतन्त्रता के लिए किया गया है. अपनी स्वतन्त्रता को अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति का सुअवसर मत बनाओ परन्तु प्रेमपूर्वक एक दूसरे की सेवा करो 14 क्योंकि सारी व्यवस्था का सार सिर्फ एक वाक्य में छिपा हुआ है: जैसे तुम स्वयं से प्रेम करते हो, वैसे ही अपने पड़ोसी से भी प्रेम करो. 15 यदि तुम एक दूसरे को हिंसक पशुओं की भांति काटते-फाड़ते रहे, तो सावधान! कहीं तुम्हीं एक दूसरे का नाश न कर बैठो!

16 मेरी सलाह यह है: तुम्हारा स्वभाव आत्मा से प्रेरित हो, तब तुम किसी भी प्रकार से शारीरिक लालसाओं की पूर्ति नहीं करोगे. 17 शरीर आत्मा के विरुद्ध और आत्मा शरीर के विरुद्ध लालसा करता है. ये आपस में विरोधी हैं कि तुम वह न कर सको, जो तुम करना चाहते हो. 18 यदि तुम पवित्रात्मा द्वारा चलाए चलते हो तो तुम व्यवस्था के अधीन नहीं हो.

19 शरीर द्वारा उत्पन्न काम स्पष्ट हैं: वेश्यागामी, अशुद्धता, लुचपन, 20 मूर्तिपूजा, जादू-टोना, शत्रुता, झगड़ा, जलन, क्रोध, स्वार्थ, मतभेद, विधर्म, 21 ड़ाह, मतवालापन, लीला-क्रीड़ा तथा इनके समान अन्य, जिनके विषय में मैं तुम्हें चेतावनी दे रहा हूँ कि जिनका स्वभाव इस प्रकार का है, वे मेरी पूर्वचेतावनी के अनुरूप परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे.

22 परन्तु आत्मा का फल है प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, दया, उदारता, विश्वस्तता, 23 विनम्रता तथा आत्मसंयम; कोई भी विधान इनके विरुद्ध नहीं है. 24 जो मसीह येशु के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी वासनाओं और अभिलाषाओं सहित क्रूस पर चढ़ा दिया है. 25 अब, जबकि हमने पवित्रात्मा द्वारा जीवन प्राप्त किया है, हमारा स्वभाव भी आत्मा से प्रेरित हो. 26 न हम घमण्ड़ी बनें, न एक दूसरे को उकसाएं और न ही आपस में द्वेष रखें.