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मसीह येशु का येरूशालेम में अपने ही भाइयों द्वारा उपहास

इन बातों के बाद मसीह येशु गलील प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में यात्रा करने लगे. वह यहूदिया प्रदेश में जाना नहीं चाहते थे क्योंकि यहूदी उनकी हत्या की ताक में थे. यहूदियों का एक पर्व—झोपड़ियों का उत्सव—पास था. मसीह येशु के भाइयों ने उनसे कहा, “यहूदिया चले जाओ जिससे तुम्हारे चेले तुम्हारे इन कामों को देख सकें; ख्याति चाहनेवाला व्यक्ति अपने काम गुप्त में नहीं करता. जब तुम ये काम करते ही हो तो स्वयं को संसार पर प्रकट कर दो.” मसीह येशु के भाइयों तक को उन में विश्वास नहीं था.

इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हारा सही समय तो कभी भी आ सकता है किन्तु मेरा सही समय अभी नहीं आया. संसार तुमसे घृणा नहीं कर सकता—वह मुझसे घृणा करता है क्योंकि मैं यह प्रकट करता हूँ कि उसके काम बुरे हैं. तुम पर्व में जाओ. मैं अभी नहीं जाऊँगा क्योंकि मेरा समय अभी नहीं आया है.” यह कह कर मसीह येशु गलील प्रदेश में ही ठहरे रहे.

मन्दिर में मसीह येशु का निर्भीक प्रचार

10 अपने भाइयों के झोपड़ियों के उत्सव में चले जाने के बाद वह भी गुप्त रूप से वहाँ गए. 11 उत्सव में कुछ यहूदी मसीह येशु को खोजते हुए पूछताछ कर रहे थे, “कहाँ है वह?” 12 यद्यपि मसीह येशु के विषय में लोगों में बड़ा विवाद हो रहा था—कुछ कह रहे थे, “वह भला व्यक्ति है”.

और कुछ का कहना था, “नहीं, वह भरमानेवाला है—सब के साथ छल करता है” 13 —तौभी कोई भी व्यक्ति यहूदियों के भय के कारण मसीह येशु के विषय में खुल कर बात नहीं करता था.

उत्सव के समय मसीह येशु के प्रवचन

14 जब उत्सव के मध्य मसीह येशु मन्दिर में जा कर शिक्षा देने लगे, 15 यहूदी चकित हो कर कहने लगे, “यह व्यक्ति बिना पढ़े ज्ञानी कैसे बन गया?” 16 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यह शिक्षा मेरी नहीं परन्तु उनकी है, जिन्होंने मुझे भेजा है. 17 यदि कोई व्यक्ति उनकी इच्छा पूरी करने के लिए प्रण करे तो उसे यह मालूम हो जाएगा कि यह शिक्षा परमेश्वर की ओर से है या मेरी ओर से. 18 वह, जो अपने ही विचार प्रस्तुत करता है, अपना ही आदर चाहता है, परन्तु वह, जो अपने भेजनेवाले का आदर चाहता है, वह बिल्कुल सच्चा है और उसमें कोई छल नहीं. 19 क्या मोशेह ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दिया? फिर भी तुम में से कोई उसका पालन नहीं करता. मेरी हत्या की ताक में क्यों हो तुम?”

20 भीड़ ने उत्तर दिया, “कौन तुम्हारी हत्या करना चाहता है? तुम प्रेतात्मा से पीड़ित हो.”

21 मसीह येशु ने कहा, “मैंने शब्बाथ पर एक चमत्कार किया और तुम सब क्रोधित हो गए. 22 मोशेह ने तुम्हें ख़तना विधि दी—परन्तु इसको आरम्भ करने वाले मोशेह नहीं, हमारे कुलपिता हैं—जिसके अनुसार तुम शब्बाथ पर भी ख़तना करते हो. 23 तुम शब्बाथ पर भी ख़तना करते हो कि मोशेह का व्यवस्था भंग न हो, तो तुम लोग इससे गुस्से में क्यों हो कि मैंने शब्बाथ पर किसी को पूरी तरह स्वस्थ किया? 24 तुम्हारा न्याय बाहरी रूप पर नहीं परन्तु सच्चाई पर आधारित हो.”

लोगों द्वारा मसीह के आने पर विचार-विमर्श

25 येरूशालेमवासियों में से कुछ ने यह प्रश्न किया, “क्या यह वही नहीं, वे जिसकी हत्या की ताक में हैं? 26 परन्तु देखो, वह भीड़ से खुल कर, बिना डर के बातें करता है और अधिकारी कुछ भी नहीं कहते! कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारियों को मालूम हो गया है कि यही वास्तव में मसीह हैं? 27 इस व्यक्ति की पृष्ठभूमि हमें मालूम है, किन्तु जब मसीह प्रकट होंगे तो किसी को यह मालूम नहीं होगा कि वह कहाँ के हैं.”

28 मन्दिर में शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ से आया हूँ. सच यह है कि मैं स्वयं नहीं आया. जिन्होंने मुझे भेजा है, वह सच्चा है किन्तु तुम उन्हें नहीं जानते, 29 मैं उन्हें जानता हूँ क्योंकि मैं उन्हीं से हूँ और मुझे उन्हीं ने भेजा है.”

30 यह सुन कर उन्होंने मसीह येशु को बन्दी बनाना चाहा किन्तु किसी ने उन पर हाथ न डाला क्योंकि उन का समय अब तक नहीं आया था.

मसीह येशु द्वारा अपने जाने की पूर्वघोषणा

31 फिर भी भीड़ में से अनेकों ने मसीह येशु में विश्वास रखा तथा विचार-विमर्श करने लगे, “क्या प्रकट होने पर मसीह इस व्यक्ति से अधिक अद्भुत चिह्न प्रदर्शित करेंगे?”

अगुवों द्वारा मसीह येशु को पकड़ने का प्रयास

32 फ़रीसियों ने भीड़ को इस विषय में आपस में विचार-विमर्श करते हुए सुन लिया. इसलिए मसीह येशु को बन्दी बनाने के लिए प्रधान पुरोहितों व फ़रीसियों ने मन्दिर के सन्तरियों को भेजा.

33 मसीह येशु ने उनसे कहा, “थोड़े समय के लिए मैं तुम्हारे साथ हूँ, उसके बाद मैं अपने भेजनेवाले के पास लौट जाऊँगा. 34 तुम मुझे खोजोगे किन्तु पाओगे नहीं क्योंकि जहाँ मैं होऊँगा, तुम वहाँ नहीं आ सकते.”

35 इस पर यहूदी विचार-विमर्श करने लगे, “यह व्यक्ति कहाँ जाने पर है कि हम उसे खोज नहीं पाएँगे? क्या यह यूनानियों के मध्य प्रवासी यहूदियों में बसना चाहता है कि यूनानियों को भी शिक्षा दे? 36 यह क्या कह रहा है कि तुम मुझे खोजोगे और नहीं पाओगे क्योंकि जहाँ मैं होऊँगा तुम वहाँ नहीं आ सकते?”

जीवन-जल की प्रतिज्ञा

37 उत्सव के अन्तिम दिन, जब उत्सव चरम सीमा पर होता है, मसीह येशु ने खड़े हो कर ऊँचे शब्द में कहा, “यदि कोई प्यासा है तो मेरे पास आए और पिए. 38 जो मुझमें विश्वास करता है, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: उसके अंदर से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगीं.” 39 यह उन्होंने पवित्रात्मा के विषय में कहा था, जिन्हें उन पर विश्वास करनेवाले प्राप्त करने पर थे. पवित्रात्मा अब तक उतरे नहीं थे क्योंकि मसीह येशु अब तक महिमा को न पहुँचे थे.

मसीह के आने पर दोबारा चर्चा

40 यह सब सुन कर भीड़ में से कुछ ने कहा, “सचमुच यह व्यक्ति ही वह भविष्यद्वक्ता है”.

41 कुछ अन्य ने कहा, “यह मसीह हैं”.

परन्तु कुछ ने कहा, “मसीह का आना गलील से तो नहीं होगा न? 42 क्या पवित्रशास्त्र के अनुसार मसीह का आना दाविद के वंश और उनके नगर बैथलहम से न होगा?” 43 इस प्रकार मसीह येशु के कारण भीड़ में मतभेद हो गया. 44 कुछ उन्हें बन्दी बनाना चाहते थे फिर भी किसी ने भी उन पर हाथ न डाला.

यहूदी नायकों का अविश्वास

45 सन्तरियों के लौटने पर प्रधान पुरोहितों और फ़रीसियों ने उनसे पूछा, “तुम उसे ले कर क्यों नहीं आए?”

46 सन्तरियों ने उत्तर दिया, “ऐसा बतानेवाला हमने आज तक नहीं सुना.”

47 तब फ़रीसियों ने कटाक्ष किया, “कहीं तुम भी तो उसके बहकावे में नहीं आ गए? 48 क्या प्रधानों या फ़रीसियों में से किसी ने भी उसमें विश्वास किया है? 49 व्यवस्था से अज्ञान भीड़ तो वैसे ही शापित है.”

50 तब निकोदेमॉस ने, जो प्रधानों में से एक थे तथा मसीह येशु से पहले मिल चुके थे, उनसे कहा, 51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति की सुने बिना और उसकी गतिविधि जाने बिना उसे अपराधी घोषित करती है?”

52 इस पर उन्होंने निकोदेमॉस से पूछा, “कहीं तुम भी तो गलीली नहीं हो? शास्त्रों का मनन करो और देखो कि किसी भी भविष्यद्वक्ता का आना गलील प्रदेश से नहीं होता.”

53 वे सभी अपने-अपने घर लौट गए.