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मसीह येशु पिलातॉस के सामने

(मत्ति 27:11-14; मारक 15:2-5; लूकॉ 23:2-5)

28 पौ फटते ही वे मसीह येशु को कायाफ़स के पास से राजभवन ले गए; किन्तु उन्होंने स्वयं भवन में प्रवेश नहीं किया कि कहीं वे फ़सह भोज के पूर्व सांस्कारिक रूप से अशुद्ध न हो जाएँ. 29 इसलिए पिलातॉस ने बाहर आ कर उनसे प्रश्न किया, “क्या आरोप है तुम्हारा इस व्यक्ति पर?”

30 उन्होंने उत्तर दिया, “यदि यह व्यक्ति अपराधी न होता तो हम इसे आपके पास क्यों लाते?”

31 पिलातॉस ने उनसे कहा, “तो इसे ले जाओ और अपने ही नियम के अनुसार स्वयं इसका न्याय करो.” इस पर यहूदियों ने कहा, “किसी के प्राण लेना हमारे अधिकार में नही है.” 32 ऐसा इसलिए हुआ कि मसीह येशु के वे वचन पूरे हों, जिनके द्वारा उन्होंने संकेत दिया था कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी.

33 इसलिए भवन में लौट कर पिलातॉस ने मसीह येशु को बुलवाया और प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”

34 इस पर मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “यह आपका अपना विचार है या अन्य लोगों ने मेरे विषय में आपको ऐसा बताया है?”

35 पिलातॉस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे अपने ही लोगों और प्रधान पुरोहितों ने तुम्हें मेरे हाथ सौंपा है. बताओ, ऐसा क्या किया है तुमने?”

36 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है. यदि इस संसार का होता तो मेरे सेवक मुझे यहूदियों के हाथ सौंपे जाने के विरुद्ध लड़ते; किन्तु सच्चाई तो यह है कि मेरा राज्य यहाँ का है ही नहीं.”

37 इस पर पिलातॉस ने उनसे कहा, “तो तुम राजा हो?”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “आप ठीक कहते हैं कि मैं राजा हूँ. मेरा जन्म ही इसलिए हुआ है. संसार में मेरे आने का उद्देश्य यही है कि मैं सच की गवाही दूँ. हर एक व्यक्ति, जो सच्चा है, मेरी सुनता है.” 38 “क्या है सच?” पिलातॉस ने प्रश्न किया.

पिलातॉस का मसीह येशु को मुक्त करने का विफल प्रयास

तब पिलातॉस ने दोबारा बाहर जा कर यहूदियों को सूचित किया, “मुझे उसमें कोई दोष नहीं मिला

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यीशु का पिलातुस के सामने लाया जाना

(मत्ती 27:1-2, 11-31; मरकुस 15:1-20; लूका 23:1-25)

28 फिर वे यीशु को कैफा के घर से रोमी राजभवन में ले गये। सुबह का समय था। यहूदी लोग राजभवन में नहीं जाना चाहते थे कि कहीं अपवित्र[a] न हो जायें और फ़सह का भोजन न खा सकें। 29 तब पिलातुस उनके पास बाहर आया और बोला, “इस व्यक्ति के ऊपर तुम क्या दोष लगाते हो?”

30 उत्तर में उन्होंने उससे कहा, “यदि यह अपराधी न होता तो हम इसे तुम्हें न सौंपते।”

31 इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, “इसे तुम ले जाओ और अपनी व्यवस्था के विधान के अनुसार इसका न्याय करो।”

यहूदियों ने उससे कहा, “हमें किसी को प्राणदण्ड देने का अधिकार नहीं है।” 32 (यह इसलिए हुआ कि यीशु ने जो बात उसे कैसी मृत्यु मिलेगी, यह बताते हुए कही थी, सत्य सिद्ध हो।)

33 तब पिलातुस महल में वापस चला गया। और यीशु को बुला कर उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”

34 यीशु ने उत्तर दिया, “यह बात क्या तू अपने आप कह रहा है या मेरे बारे में यह औरों ने तुझसे कही है?”

35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या तू सोचता है कि मैं यहूदी हूँ? तेरे लोगों और महायाजकों ने तुझे मेरे हवाले किया है। तूने क्या किया है?”

36 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस जगत का होता तो मेरी प्रजा मुझे यहूदियों को सौंपे जाने से बचाने के लिए युद्ध करती। किन्तु वास्तव में मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।”

37 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “तो तू राजा है?”

यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इसी प्रयोजन से मैं इस संसार में आया हूँ कि सत्य की साक्षी दूँ। हर वह व्यक्ति जो सत्य के पक्ष में है, मेरा वचन सुनता है।”

38 पिलातुस ने उससे पूछा, “सत्य क्या है?” ऐसा कह कर वह फिर यहूदियों के पास बाहर गया और उनसे बोला, “मैं उसमें कोई खोट नहीं पा सका हूँ

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Footnotes

  1. 18:28 अपवित्र यहूदी यह मानते थे कि किसी गैर यहूदी के घर में जाने से उनकी पवित्रता नष्ट हो जाती है। देखें यूहन्ना 11:55