Add parallel Print Page Options

उपवास के प्रश्न का उत्तर

(मत्ति 9:14-17; मारक 2:18-22)

33 फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, “योहन के शिष्य अक्सर उपवास और प्रार्थना करते हैं. फ़रीसियों के शिष्य भी यही करते हैं किन्तु आपके शिष्य तो खाते-पीते रहते हैं.”

34 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या वर की उपस्थिति में अतिथियों से उपवास की आशा की जा सकती है? 35 किन्तु वह समय आएगा, जब वर उनके मध्य से हटा लिया जाएगा—वे उस समय उपवास करेंगे.”

36 मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया, “पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता. यदि कोई ऐसा करता है तब कोरा वस्त्र तो नाश होता ही है साथ ही वह जोड़ पुराने वस्त्र पर अशोभनीय भी लगता है. 37 वैसे ही नया दाखरस पुरानी मश्कों में रखा नहीं जाता. यदि कोई ऐसा करे तो नया दाखरस मश्कों को फाड़ कर बह जाएगा और मटकी भी नाश हो जाएगी. 38 नया दाखरस नई मटकियों में ही रखा जाता है. 39 पुराने दाखरस का पान करने के बाद कोई भी नए दाखरस की इच्छा नहीं करता क्योंकि वे कहते हैं, ‘पुराना दाखरस ही उत्तम है.’”

Read full chapter