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बुरे किसानों का दृष्टान्त

(मारक 12:1-12; लूकॉ 20:9-19)

33 “एक और दृष्टान्त सुनिए: एक गृहस्वामी था, जिसने एक दाख की बारी लगायी, चारदीवारी खड़ी की, रसकुण्ड बनाया तथा मचान भी. इसके बाद वह दाख की बारी किसानों को पट्टे पर दे कर यात्रा पर चला गया. 34 जब उपज तैयार होने का समय आया तब उसने किसानों के पास अपने दास भेजे कि वे उनसे उपज का पहले से तय किया हुआ भाग इकट्ठा करें.

35 “किसानों ने उसके दासों को पकड़ा, उनमें से एक की पिटाई की, एक की हत्या तथा एक का पथराव. 36 अब गृहस्वामी ने पहले से अधिक संख्या में दास भेजे. इन दासों के साथ भी किसानों ने वही सब किया. 37 इस पर यह सोच कर कि वे मेरे पुत्र का तो सम्मान करेंगे, उस गृहस्वामी ने अपने पुत्र को किसानों के पास भेजा.

38 “किन्तु जब किसानों ने पुत्र को देखा तो आपस में विचार किया, ‘सुनो! यह तो वारिस है, चलो, इसकी हत्या कर दें और पूरी सम्पत्ति हड़प लें.’ 39 इसलिए उन्होंने पुत्र को पकड़ा, उसे बारी के बाहर ले गए और उसकी हत्या कर दी.

40 “इसलिए यह बताइए, जब दाख की बारी का स्वामी वहाँ आएगा, इन किसानों का क्या करेगा?”

41 उन्होंने उत्तर दिया, “वह उन दुष्टों का सर्वनाश कर देगा तथा दाख की बारी ऐसे किसानों को पट्टे पर दे देगा, जो उसे सही समय पर उपज का भाग देंगे.”

42 येशु ने उनसे कहा, “क्या आपने पवित्रशास्त्र में कभी नहीं पढ़ा:

“जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने अनुपयोगी घोषित कर दिया
    था वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया.
यह प्रभु की ओर से हुआ और यह हमारी दृष्टि में अनूठा है?

43 “इसलिए मैं आप सब पर यह सत्य प्रकाशित कर रहा हूँ: परमेश्वर का राज्य आप से छीन लिया जाएगा तथा उस राष्ट्र को सौंप दिया जाएगा, जो उपयुक्त फल लाएगा. 44 वह, जो इस पत्थर पर गिरेगा, टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा किन्तु जिस किसी पर यह पत्थर गिरेगा उसे कुचल कर चूर्ण बना देगा.”

45 प्रधान याजक और फ़रीसी यह दृष्टान्त सुन कर समझ गए कि येशु यह उन्हीं के विषय में कह रहे थे 46 इसलिए उन्होंने येशु को पकड़ने की कोशिश तो की किन्तु उन्हें लोगों का भय था क्योंकि लोग येशु को भविष्यद्वक्ता मानते थे.

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